Wednesday, February 10, 2021

Qualities of the Soul - Atman Ke Gun

 आत्मा के गुण

● अबोधिता आत्मा है और आत्मा ही अबोधिता है, जिसे कोई भी नष्ट नहीं कर सकता। सहजयोग के माध्यम से (मूलाधार चक्र के शुध्दीकरण से ) अबोधिता को  पुनर्स्थापित क्रिया जा सकता है।सहजयोग अबोध बनने की उपयुक्त विधि है। हमारी निर्विचार चेतना से अबोधिता विकसित होती है। जब आप निर्विचार चेतना में होते हैं, तो आप प्रतिक्रिया नही करते और न ही गवत चीजों से लिप्त होते हैं। आप चीजों को केवल देखते हैं। तब आपमें अन्तनिर्हित अबोधिता अत्यंत सुंदरता पूर्वक जागृत होती हैं, बिल्कुल वैसे ही जैसे गन्दे पाणी के तालाब से कमल खिलता हैं।

प.पू.श्रीमाताजी, १६.९.२०००


● पवित्रता:-पवित्रता आनंदमयी है, केवल आनन्दमयी ही नहीं, यह पूरे व्यक्तित्व को सुगंधमय कर देती हैं।

प.पू.श्रीमाताजी,२९.११.१९८४


● दृष्टि की पवित्रता और विचारों की पवित्रता....आपकी दृष्टि यदि पवित्र हैं तभी आप परमात्मा के प्रेम का आनंद उठा सकते हैं अन्यथा नही.....पावन प्रेम में वासना और लोभ का कोई स्थान नहीं होता....जैसा कि मेरा नाम दर्शता हैं.आप मेरे बच्चे हैं। आप निर्मल के बच्चे हैं, अर्थात पावनता के पावनता ही आपके जीवन का आधार है।

प.पू.श्रीमाताजी, टर्की,२३.४.२०००


● जैसे ही आपका गणेश तत्व जमना शुरू होते जाएगा....आनंद अन्दर से आने लग जाता है। क्योंकि तत्व निर्मल है, पवित्र है।इसलिये अपने गणेश तत्व (मूलाधार चक्र) को आपको बहुत सुधारू रूप से संम्भालना चाहिए।

प.पू.श्रीमाताजी ,१५.२.१९८१


● अबोधिता:- श्री गणेश हमारेअन्दर अबोधिता के स्त्रोत हैं।अबोधिता ऐसी शक्ति है जो आपकी रक्षा करती है और ज्ञान का प्रकाश प्रदान करती है। यही अबोधिता आपको अन्य लोगों से प्रैम करना ,उनकी देखभाल करना, उनके प्रति भद्र होना सिखती है। अबोधिता में भय बिलकुल भी नहीं होता। जैसे बच्चा अपनी अबोधिता में जानता है कि उसकी देखभाल हो रही है और वह सुरक्षित है। वह जानता है कि कोई शक्ति है जो बहुत ऊंची है। उसे चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

प.पू.श्री माताजी, कोमोरोस, २५.१०.१९८७


● अबोधिता की यह पहचान है कि मनुष्य को सभी में पवित्रता दिखायी देती है, क्योकि अपने आप पवित्र होने के कारण वह अपवित्र नजरों से किसी को नहीं देखता है।

प.पू.श्री माताजी, बम्बई, २२.९.१९७९


● अबोधिता पूर्ण सच्चा विवेक है। किसी मकसद के लिये यह कार्य नहीं करता, यह निर्व्याज‌ हैं,पूर्ण नि:स्वार्थ होने के कारण यह आनन्द की ऊंचाईयो को प्राप्त कर लेता है।अबोधिता ही आपको नैतिक शक्ति तथा नैतिक सूझबूझ प्रदान करती है। अबोधिता में व्यक्ति को शान्त करने की शक्ति है, अत्यंत शांत,क्रोध और हिंसाविहीन अबोध व्यक्ति निश्र्चित होता है और निश्छल जीवन-यापन करता है।

प.पू.श्रीमाताजी,१६.९.२०००


● आध्यात्मिक व्यक्ति अबोध होता है।अबोध ,उसमें चालाकी नहीं होती। अबोधिता ही सभी कुछ है। व्यक्ति जो कुछ भी बोलता है,कहता है,यह अबोधिता से ही आता है,इसमें पुस्तकों से पर्यावरण की हुई बौद्धिकता नहीं होती। ऐसा कुछ भी नहीं होता इसमें तो केवल शुध्द और सहज अबोधिता होती है जो बहुत अच्छी तरह कार्य करती है। यह इतकी स्वच्छ है,यह केवल वही कहती है जो यह जानती है और यह उच्चतम है।अबोध लोगो को अबोधिता ही समाधान प्रदान करती है। अबोधिता पर पूरा भौतिक विश्र्व भी आक्रमण नही‌ कर सकता। इसे नष्ट नहीं किया जा सकता। अबोधिता सर्वव्यापी है।परंतु इसे आच्छादित किया जा सकता है, क्योकि यह तो अपने ही तरीके से कार्य करेगी। इसे विकसित करने‌ का प्रयास  करें ....नेति नेति कहते हुये इस अबोधिता के तत्व को विकसित करे अपने सारे दोषों  को नेति-नेति' कहते रहें, नेति-नेति' कहते हुए आप 'ये मेरा नही' , 'ये मेरा नही'है' ये मेरा नहीं है' पर पहुंच जाते है।

प.पू.श्री माताजी, १.१.१९८३

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