🙏🌹💐महाअवतरन श्री आदिशक्ती माताजी श्री निर्मला देवीजी 💐🌹🙏
🙏 💐 निष्क्रिय ध्यान पद्धति💐🙏
(निक नामके सहजयोगी को जब मालूम हुआ कि 30 वर्षों की सहजयोग की साधना के बावजूद भी उन्हें यूरिनरी ब्लैडर का कैंसर है तो वे सदमें में आ गये। इसके लिये उनके सहजयोगी मित्रों ने उन्हें कई प्रकार के सहजयोग के उपचारों को करने के सुझाव दिये परंतु उन्होंने जिस उपचार विधि पर सबसे ज्यादा भरोसा किया वो थी, सहजयोग की निष्क्रय ध्यान विधि और आज वे बिल्कुल स्वस्थ हैं। उन्होंने इस निष्क्रिय ध्यान विधि के लिये एक लिंक भी दिया है, जिसे पुराने सहजविद्या पोर्टल पर देखा या सुना जा सकता है। आज इनके द्वारा किये गये निष्क्रिय ध्यान की विधि के बारे में पढ़ लेते हैं जिसे हमारी परमेश्वरी माँ ने स्वयं बताया है।
(सहजयोगिनी इरीन विडोस द्वारा MAGYAR ग्रुप पर पोस्टेड)
..... इसी प्रकार से वाइब्रेशन्स हैं ..... वे आते हैं और रेडियेट करते हैं। आपको स्वयं को बिना किसी प्रयास के इन वाइब्रेशन्स पर छोड़ देना है। बिल्कुल भी चिंता न करें कि आपको कौन सी समस्या है। मैंने देखा है कि ध्यान के दौरान कई लोगों को यदि कोई कैच आता है तो वे उसको देखने लगते हैं। आप इसकी चिंता बिल्कुल न करें ..... इसे जाने दें और ये अपने आप ठीक हो जायेगा। आपको इसके लिये कोई क्रिया नहीं करनी है और यही मेडिटेशन या ध्यान है। मेडिटेशन का अर्थ है स्वयं को परमात्मा की कृपा पर छोड़ देना। अब ये उसी कृपा को मालूम है कि आपको किस प्रकार से ठीक किया जाना है ..... वही आपकी मरम्मत करती है। ये उसे ही मालूम है कि उसे आपके अंदर किस प्रकार से स्थापित होना है। अपनी आत्मा को जागृत रखें। आपकी आत्मा को सब मालूम है। आपको जरा भी यो सोचने की आवश्यकता नहीं है कि आपको कौन सा मंत्र लेना है ध्यान में आपको एकदम निष्क्रिय हो जाना है। स्वयं को पूरी तरह से छोड़ दें और उस समय एकदम से निर्विचार हो जाए।
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दूसरी ओर कुछ लोग झपकियाँ लेने लगते हैं लेकिन नहीं आपको सावधान रहने की जरूरत है। यदि आपने झपकियाँ लीं तो कुछ भी कार्यान्वित नहीं होने वाला। ये ध्यान का दूसरा पहलू है। अगर आप आलस्य करते हैं तो कुछ भी कार्यान्वित नहीं होगा। आपको एकदम सावधान और चौकन्ना रहने की आवश्यकता है ...... पूरी तरह से निष्क्रिय ..... बिल्कुल निष्क्रिय रहना है। यदि आप पूरी तरह से निष्क्रिय रहते हैं तो आपका मेडिटेशन बहुत अच्छी तरह से कार्यान्वित होगा। बस स्वयं को उस परमात्मा की कृपा पर छोड़ दीजिये। अपनी समस्याओं के बारे में बिल्कुल भी न सोचें। *आपका कोई भी चक्र क्यों न पकड़ रहा हो या कुछ और हो बस आप उसे छोड़ दें।
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ध्यान में परमात्मा की सर्वव्याप्त शक्ति अपना कार्य करना प्रारंभ करती है। आपको इसके लिये कोई योजना नहीं बनानी है .... कुछ भी नहीं करना है केवल निष्क्रिय हो जाँये .... एकदम निष्क्रिय। आपको कोई भी नाम लेने की जरूरत नहीं .... अगर आपका आज्ञा या कोई अन्य चक्र पकड़ रहा हो तो बिल्कुल भी परेशान न हों। बस सब कुछ स्वयं ही कार्यान्वित होता जा रहा है और ये कार्यान्वित होता रहेगा और उन चमत्कारों को करता रहेगा जो इसे करने हैं। आपको इसके लिये कोई चिंता नहीं करनी है। इसको अपना कार्य मालूम है। जैसे ही आप कोई प्रयास करना प्रारंभ करते हैं तो समझ जाँये कि आप परमात्मा की शक्ति का मार्ग अवरूद्ध कर रहे हैं। अतः ध्यान के लिये किसी प्रयास की आवश्यकता नहीं है और न किसी मंत्र की....। बस कहते जाए कि इसे जाने दो .... इसे जाने दो..... बस इतना ही।
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जब आप अपने हाथ मेरी ओर करते हैं तो ये भी एक मंत्र के समान हैं .... बस इतना ही काफी है। ऐसा करना मात्र ही मंत्र है। मंत्रों को अब कहने की जरूरत ही नहीं है। आपको बस अपने मन में इस विचार को ..... इस भाव को रखना मात्र है .... आपने अपने हाथों को फैलाना मात्र है और ये कार्यान्वित हो उठेगा। जब ये भाव आपके मन में आ गया तो फिर किसी मंत्र की जरूरत नहीं है। *आप मंत्रोच्चार से परे हो जाते हैं। इसलिये आपको एकदम निष्क्रिय होना पड़ेगा।
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ध्यान आपके अपने उत्थान के लिये है। ये आपके प्राप्त करने के लिये है। एक बार जब आप इसमें प्रवेश कर जाए तो आपको शक्तियाँ भी प्राप्त होने लगती हैं, मानों कि आप गवर्नर हो गये हैं .... आपको किसी गवर्नर जैसी शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं। इस समय आपको किसी के बारे में सोचने की जरूरत नहीं है .... किसी पर चित्त डालने की आवश्यकता नहीं है ..... बस इसे प्राप्त करते जाय। अपनी समस्याओं के बारे में न सोचें। केवल प्रयासविहीन हो जाँय। *परमात्मा की शक्तियाँ उन लोगों पर ज्यादा अच्छा कार्य करती हैं जो इसे प्राप्त कर रहे हैं।
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आपकी अनेकों समस्यायें है और इसीलिये आप यहाँ हैं, आप उन समस्याओं का समाधान स्वयं नहीं ढूंढ सकते हैं। उनका समाधान परमात्मा की शक्तियों द्वारा ढूंढा जायेगा। इसे आपको अच्छी तरह से समझ लेना चाहिये कि हम अपनी समस्याओं का समाधान नहीं ढूँढ सकते। अतः ये हमसे परे हैं। उनको परमात्मा पर ही छोड़ दें और स्वयं को उनकी कृपा पर छोड़ कर एकदम निष्क्रिय .... निष्क्रिय.... और केवल निष्क्रिय ध्यान करें। एक सीट पर आराम से बैठ जाँय और दोनों पैर जमीन पर रहने दें। दोनों हाथों को भी आराम की अवस्था में रखें और आराम से बैठ जाय क्योंकि आपको लंबे समय तक बैठे रहना है। अब अपने अंतर्मन में अपना चित्त मुझ पर डालें .... यदि हो सके तो मेरी कुंडलिनी पर अपना चित्त रखें। अतः चाहे आप मेरे साक्षात सामने या मेरे फोटोग्राफ पर ध्यान कर रहे हों ..... निष्क्रिय और एकदम निष्क्रिय होना ही ध्यान की कुंजी है।
🌹🌹परमपूज्य माताजी श्रीनिर्मलादेवी,🌺🌺
लंदन, 1st.Jan.1980
(निर्मल विद्या पृष्ठ 225)
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