ॐ जय श्री माताजी ॐ
तुम्हारी माँ सहस्त्रार मैं निवास करती हैं । वह मेरा घर है । जैसे - जैसे तुम ध्यान करते हो वैसे - वैसे तुम्हारा चित्त ऊपर की और प्रवाहित होता है । यह चित्त तुम्हें मेरा निवास जहाँ है उसके पास लाता है । सर्वप्रथम ध्यान मैं रखिये की ध्यान मैं बैठते समय यह निश्चित न करो की कुछ भी कर तुम्हें मेंरा दर्शन लेना ही चाहिए । तुम्हारे ध्यान की दिशा मेरी प्रतिमा ढूँढने के लिए न मोड़ो । शुरू - शुरू मैं तुम्हारा ध्यान पूर्व की तरह ही रहने दो । लेकिन जब तुम मेरे फोटो के सामने ध्यान नहीं करते हो और दैनंदिन नित्य कर्म मैं व्यस्त रहते हो । ऐसे समय अपना चित्त सहस्त्रार मैं रखने का यत्न करो । धीरे - धीरे तुम निरंतर ध्यान मैं रह सकोगे । तुम बिलकुल विचलित न हो सकोगे । यह मुश्किल नहीं है और यह आप कर सकोगे । कितने ही लोगो को यह संभव हो चूका है । तुम्हारा ध्येय "पीछे देखना " नहीं होना चाहिए । यह घटित हुआ तो उत्तम , न हुआ तो भी बुरा नहीं । खूब सहजयोगी जो सहस्त्रार मैं पहुचे है और मरते चरणों मैं हैं भौतिक जगत मैं वे इस सबका अंदाज भी नहीं कर सकते । उसके कुछ कारन हैं ।
सर्वप्रथम यह महत्वपूर्ण है की आपका चित्त अधिकाधिक सहस्त्रार में होना चाहिए ।
सहजयोगी की जीवन पध्हती का अर्थ ही है यह । तुम जबरदस्ती से कई भी चीज नहीं कर सकते । तुम्हें चुनाव का स्वातंत्र्य है । लेकिन इस स्वतंत्रता मैं तुम पूर्ण स्वातंत्र्य (मुक्ति ) का चुनाव कर सकए हो यह इसलिए है की जो बहुत पूर्व से इसकी वाट जोह रहे हैं और इस उदिस्ती को पहुचने के पूर्व तयारी मैं हैं । जो सहस्त्रार मैं से मुझसे संपर्क मैं होते हैं वे आपको उनका जीवन कितना बदल गया है इस बारे मैं बताएँगे । यह याने शिक्षा का बंधन फेक देने के सामान है । वहां सिखाने जैसा कुछ भी नहीं रहता । तुम्हें किसी पाठ्य पुस्तक , स्वाध्याय पुस्तक आदि की जरुरत नहीं । अब सारा ज्ञान आप में ही निहित है । अर्थात तुम ही अपनी ज्ञानरूपी श्रेणी ऊँची उठाते जाते हो अगर आपका निर्णय पक्का होगा तो तुम तैयार होते हो । मैं हमेशा उसकी राह देख रही हूँ ।
आज्ञा चक्र कितना धोखा दायक है यह तुम सबको मालूम है इसलिए तुम्हें ध्यान में रखना चाहिए की आज्ञाचक्र में से तुम्हें कोई सी भी चीज जांचने से कुछ भी साध्य नहीं होगा , सर्वप्रथम तुम्हें ध्यान में रखना चाहिए की अपना चित्त किन चीजो पर जा रहा है ।
सामान्यतः तुम्हें आज्ञा चक्र छोड़कर अपने चित्त को ऊपर उठाना चाहिए ।
ध्यान के सामर्थ्य से तुम अपना चित्त सदैव सहस्त्रार में रख सकते हो । अगर ऐसा होता है तो तुम मुझे सहस्त्रार में देख सकते हो इसी का अर्थ है आपके प्रयत्न साकार होंगे । तुम धेय्य के नजदीक होंगे तुम्हें आनंद दायक , आश्चर्यजनक घटना घटित होंगी । तुम बाहरी घटनाओ पर विश्वाश रखते हो , आपका चित्त सहस्त्रार में रखते हुए उन घटनाओं की और देखने पर तुम्हें क्या अनुभव होता है यह देखो ।
हमें ऐसा कहना चाहिए की तुम अपनी आँखें खुली रखते हो (सत्य के मार्ग पर ) उस समय आपकी अन्तस्थ दिव्य दृष्टी अधिक अच्छी तरह से कार्य करती है । हमेशा जब हम आँखों से देखते हैं आज्ञा चक्र कार्यरत होता है और इसलिए अपने स्वयं के भीतर अन्त्स्थित दिव्य दृष्टी से देखते रहते हैं । आपके प्रयत्न यशस्वी होंगे ही ऐसा नहीं । लेकिन आप प्रयत्न पूर्वक यह साध्य कर सकते हो , मुझे सहस्त्रार में देखना याने मेरी छवि देखना नहीं वह तो आप मुझे एहिक जीवन में भी देख रहे हैं क्यंकि मैं जीवित हूँ । इसका अर्थ है निश्चित मोहजाल में ही प्रवत्त रहना । पर यह मोहजाल सत्य है । इससे अधिक यह कहना अधिक उचित होगा की इस मोहजाल को ही सत्य माने ।
आपके व्यवहार वर्ताव में परिपूर्णता रहे इसलिए आपकी माँ ने आपकी सर्वश्वी व्यवस्था की है ।
आप अगर योग्य स्थिति मैं नहीं हो तो आपकी प्रगति नहीं हो सकती । एक बार अगर आप पूर्ण स्थिति को प्राप्त हुए तो आप उससे दूर हो ही नहीं सकते । अगर आपसे कुछ गलतियाँ हुईं हैं , कुछ गलत घटित हुआ है तो आपको मेरे चरणों में लीनं होकर क्षमा मांगनी चाहिए और आपकी माँ क्या कह रही है इसकी और चित्तपूर्वक ध्यान देना चाहिए । इसलिए मूलतत्वों के अंतर्गत मोहजाल मैं आप शुरू - शुरू में कुछ समय तक फसते हैं । लेकिन आपको चाहिए की आप आदिशक्ति के बाजू में नज़दीक खड़े रहना सीखें । निश्चित ही यह सरल नहीं है । बहुत मुश्किल है । जब आप माँ को प्रत्यक्ष देखोगे तब तुम्हारे ध्यान में आएगा और मुझे देखना तभी संभव होगा जब आप सहस्त्रार में प्रवेश करते हो जिसके लिए मैंने पहले ही कहा है की आपका व्यवहार वर्ताव परिपूर्ण होना चाहिए । वहां (सहस्त्र मैं ) आपको पूजा के सभी अधिकार प्राप्त होते हैं ।
सहस्त्रार में आप कोई भी परिवर्तन नहीं कर सकते जो सत्य है वह वैसे ही दिखता है ।
आग्या चक्र में से और सहस्त्रार में से देखने में यही फर्क है । आग्या चक्र में से आप अपनी सुविधा अनुसार (दिमाग से ) कोई भी कल्पना कर सकते हैं । लेकिन सहस्त्रार मैं आप केवल एक विनम्र साक्षीदार होते हैं । तुम्हारी माँ के विभिन्न रूप देख सकते हो । आपकी माँ शक्ति को पहचान सकते हो । जरा रुको तुम्हारे पास " तुम्हारी माँ का (आदिशक्ति का ) ध्यान जाने दो फिर तुहें माँ के विविध रूप देखने को मिलेंगे । माँ की शक्ति पहचान आएगी । यह अगर घटित हुआ तो आप देखेंगे तुम्हारा जीवन (आयुष्य ) पूर्णत बदल चूका होगा ।
आप मेरा नित्य तुम्हारे पास अनुभव ले सकेंगे । कोई भी कार्य करते समय स्वयं मेरे चरणों में देख सकोगे । कोई भी चीज करते समय ध्यान में रहेगा की माँ आपकी तरफ देख रहीं है । आपके प्रत्येक क्षण पर माँ की नज़र है । यह कभी - कभी मेरे लिए आनंदपूर्ण अनुभव होता है यह आपको ध्यान मैं आएगा । इसके बाद मैं निरंतर आपके साथ रहूंगी और केवल आप ही मुझे देख सकते हो दूसरा कोई नहीं । आपने स्वप्न में भी जिस बात की तनिक विचार नेहं किया वह सत्य घटित होने वाला है । मुझे देखना यही ध्यान है इसलिए आप्ध्य में हो या नहीं आपको कोई फरक पड़ने वाला नहीं है क्यूंकि आप निरंतर मुझे देख रहे हैं । आप सदैव ध्यान में ही रहने वाले हो आप ध्यान स्वरुप ही होने वाले हैं । आप जब गाड़ी चला रहे होंगे तब भी मैं आपके साथ होउंगी । जिनके पास मेरा फोटो होगा उस प्रत्येक की मैं माँ रहूंगी । यह आपकी भी परीक्षा है ।
धीरे - धीरे आपकी नज़र इतनी सूक्ष्म होगी की आप मेरे शरीर पर पहनी हुई साडी का धागा भी पहचान सकोगे और ऐसा ही अन्य बातें तफसील के साथ जानोगे फिर भी आप निश्चय पूर्वक एक ही स्थिति मैं नहीं रह पाओगे और उसका परिणाम तुम्हारे सूक्ष्मता से दिखने वाले द्रश्य परिणामो पर होगा । कुछ लोगो को मैं अगर स्पस्ट नहीं दिखाई दी तो उन्हें दर लगता है , वे आशंकित होते हैं क्या यही अपनी माँ हैं , क्या माँ ही हैं ये ? इसका मतलब है आपके आग्या चक्र पर अतिरिक्त दवाव आया है और अपना चित्त सहस्त्रार मैं स्थित करो । आपकी खोए हुई स्थिति तुम्हें पुनः प्राप्त होगी । कभी - कभी सहत्रार मैं आपके सहमे हुए चेहरे देखकर बड़ी मजा आती है । मेरी माँ कहाँ हैं ? हे भगवान! क्या हुआ होगा । मुझसे माँ को किसने छीन लिया । कुल मिलाकर आप बहुत घबरा जाते हो । परन्तु कुछ प्रसंगों मैं किसी कारणवश मुझे मेरी जगह मेरा स्थान छोड़ना पड़ता है । ऐसे अवसर पर आपको घबराने की जरुरत नहीं । तुम्हारे सम्बन्ध मैं अनेक विनोदपूर्ण घटनाएँ घटतीं हैं । आप अपने विनोद बुद्धि के आधार पर स्वयं की और देखो । फिर आप जन पाओगे की आप कैसे नन्हे शिशु की तरह हैं जैसे नन्हा बच्चा अपनी माँ के इर्द गिर्द लाइन में मजे में होता है । आप एक दुसरे के तरफ मजाकिया लहजे मैं देख रहे हो । वहां आपका अहंकार अस्तित्व मैं नहीं रहता । आप सहस्त्रार मैं अहंकार रहित रहते हो । सहस्त्रार मैं यह सब कुछ मोहमय और आकर्षक होता है । लेकिन ऐसे ही अगर आप भौतिक जगत मैं रहोगे तो आपकी रवानगी पागलो के अस्पताल मैं होगी । यह स्वतंत्रता केवल सहस्त्रार मैन्ही प्राप्त होती है ।
अब आप मजबूती के साथ कह सकते हो "मेरे नन्हें बचपन का स्वागत हो !" ।
मेरे अनेक रूप हैं । आप मेरे चेहरे की और देखो और कौन से भाव व्यक्त हो रहे हैं इसे देखो । तुम्हें उस प्रसंग मैं योग्य मार्ग प्राप्त होगा उसे स्वीकार कीजिये और वह क्या है इस और ध्यान दो । आप मुझप्रश्न पूछ सकते हैं , विनती (प्रार्थना)कर सकते हैं और सभी प्रश्न इसी जगह हल कर सकते हो । यह आश्चर्य जनक शक्ति आपको प्राप्त हुई की आपकी और आगे प्रगति होते रहती है । आपको अगर कुछ भी नहीं चाहिए फिर भी आप मेरे पास बैठ सकते हैं । यह स्वतंत्रता आपको है । अगर मैंने आपसे बातें की तो उन्हें ग्रहण करोगे । यह सब एहिक जीवन के समान ही घटित होगा पर उससे भी अधिक सुन्दर होगा कारन आपकी माँ आपको छोड़कर कहीं नहीं जाएगी । तुम मेरे आँचल में निश्चिंत सो सकोगे । अब अनंत तक आप अपनी माँ के साथ हो । तुम जब कभी भौतिक जीवन में झांककर देखोगे तो आपके ध्यान मैं आएगा की यह कितना बड़ा मायाजाल है । पर वह आप स्वयं हो । जिन्हें इस सत्य का बहन हो चूका है । आपका काम हो चूका है आपको अब कुछ भी मुश्किल नहीं यह सब आपने अनुभव किया है ।
आपकी पूर्ण स्वतंत्रता के लिए आपको अनंत आशीर्वाद !
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