क्या आप उन्नति कर रहे हैं ?
पूर्ण समर्पित दिमाग के साथ आपको इस किले की तीर्थ यात्रा पर जाना है। यह तपों की एक झलक है। आपको यही करना होगा क्योंकि मैंने (श्री माताजी) बताया है। आप में से कुछ को मुसीबत या तकलीफ भी हो सकती है। आपको यात्रा के रास्ते में कुछ मुश्किल भी झेलनी होगी, परंतु यह सब मजाक सम होगी और आपको ऐसे स्थान से जाना होगा जहां पर प्रेत आदि नहीं जा सकते हैं।
1 यदि आप इन मुसीबतों को मजाक समझते हैं तो आपको जानना है कि आप उन्नति कर रहे हैं।
2 यदि आप स्वतः ही बुद्धिमान बन जाते हैं तो आपको जानना है कि आप उन्नति कर रहे हैं।
3 यदि आप शांत स्वभाव (सबूरी) हो जाते हैं और आपका गुस्सा शांत हो जाता है, जब आप पर कोई व्यक्ति आक्रमण करता है, तो आपको जानना है कि आप उन्नति कर रहे हैं।
4 यदि आप पर कठिन परीक्षा (मुसीबत) आती है और आप इसकी चिंता नहीं करते, तब आपको जानना है कि आप उन्नति कर रहे हैं।
5 यदि कोई बनावटी वस्तु आपको आकर्षित नहीं करती और ना ही दूसरों की भौतिक वस्तुओं को देखकर आप प्रभावित होते हैं, तब आपको जानना है कि आप उन्नति कर रहे हैं।
6 सहज योगी बनने के लिए कोई मेहनत या मुश्किल नहीं होनी चाहिए, जब भी आप चाहे आप सहजयोगी बन सकते है। जब आप बिना प्रयास के प्राप्त करते हैं तब आप विशेष हैं। जब आप समझते हैं कि आप विशेष हैं,तब आपको इस का आदर करना है। यह घटना घटी है और आप इसके प्रति नतमस्तक हैं। जब आपके पास कुछ शक्ति होती है, आप अबोध होते हैं, आप बुद्धिमान होते हैं, आप दयालु होते हैं और मधुर वाणी वाले होते हैं, तब आपको विश्वास करना चाहिए कि आप अपनी मां (श्री माताजी) के हृदय में होते हैं। जब नया सहज योगी नई शक्ति द्वारा चलता है, तो बहुत जल्दी विकसित होता है, तब आप बिना ध्यान के भी ध्यान में होते हैं मेरी (श्री माताजी की उपस्थिति के बिना भी आप मेरी (श्रीमाता जी) की उपस्थिति में होते हैं, तब आप बिना मांगे अपने परम पिता परमेश्वर से आशीर्वादित होते हैं।
7 अंतर अवलोकन करें, क्या आप ध्यानस्थ हो रहे हैं।
8 क्या कोई खराबी हमें महसूस हो रही है? कौन सा चक्र पकड़ रहा है?
9 क्या चैतन्य लहरियों की अनुभूति कर रहे हैं?
10 अवलोकन करें तथा स्वयं की कमियां निकालें।
11 हमारा चित् हमारी दुर्बलता पर होना चाहिए, ना कि अच्छाई या उपलब्धियों पर।
12 सर्वप्रथम यह देखना है कि हमारा हृदय चक्र साफ है या नहीं?
13 देखना है कि हमारे अंदर बदलाव हो रहा है, क्या हम गहराई प्राप्त कर रहे हैं?
14ध्यान में अगर आंखें फड़फड़ा रही हैं तो समझ लीजिए आपकी आज्ञा पर चोट हो रही है।
15 अगर आपका शरीर हिल रहा है, तो समझ लीजिए आप के मूलाधर पर कोई चोट हो रही है।
16 अगर आपके हाथ थरथरा रहे हैं, तो समझ लीजिए कि आपमें बहुत बड़ी खराबी आ गई है, उसे जूता मार कर ठीक कर लेना चाहिए।
17 आप ध्यान में एक दूसरे को समझ सकते हैं, अगर उसका आज्ञा चक्र पकड़ा है तो हृदय चक्र पकड़ा है, इसलिए स्वर ठीक से नहीं निकलते हैं।
18 हम चिंतन के माध्यम से हमारी गहराई का आंकलन कर सकते हैं।
19 किसी बात की चर्चा करते समय समझना चाहिए, कि कुंडलिनी कहां जा रही है। अन्य चर्चाएं व्यर्थ हैं, हम धर्म में कहां तक जागरूक हो गए हैं, हम धर्म में कितना पा रहे हैं, कितना परमात्मा का आनंद लूट रहे हैं, यही आपस में बताना है, बाकी सभी व्यर्थ है, बल्कि सभी बातों पर मौन रहे तो अच्छी बात है।
20 जब आप इस प्रकार के सहजयोगी हो जाएंगे, तब बहुत बड़ा अंतर हो जाएगा। बहुत बड़ा प्रतिबिंब आपके द्वारा फैलने वाला है। यही प्रतिबिंब सभी में फैलने वाला है। सहज योग, मंत्र उच्चारण संगीत आदि से नहीं होने वाला है।
21 क्या हमारा आभामंडल प्रकाशित हो रहा है?
22 क्या हमारी हथेलियों की चमड़ी कोमल, पतली या लचीली महसूस हो रही है।
23 क्या हम हमारे नाड़ी तंत्र पर चक्रों को अंतरतम में महसूस कर रहे हैं?
24 क्या हम जानते हैं कि अहंकार एवं प्रति अहंकार का शरीर पर किस प्रकार का अनुभव आता है एवं उसे कैसे दूर किया जा सकता है?
25 क्या आप निरंतर बलवंतर एवं परिपक्व हो रहे हैं?